सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Avyay kise kahte hain, paribhasha, bhed

 अव्यय (Indeclinable) की परिभाषा, भेद / avyay kise kahate hain

आज हम आपको अव्यय (Indeclinable) की परिभाषा/ Avyay kise kahte hain, paribhasha, bhed के बारे में बताने जा रहे हैं।इस पोस्ट में हम आपको अव्यय के भेद ओर अव्यय के बारे में सबकुछ बताने बाले है

Avyay ki paribhasha in hindi


Avyay kise kahte hain, paribhasha, bhed
Avyay kise kahte hain, paribhasha, bhed

Avyay kise kahte hain, paribhasha, bhed

जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नही होता है उन्हें अव्यय (अ +व्यय) या अविकारी शब्द कहते है । 


इसे हम ऐसे भी कह सकते है- 'अव्यय' ऐसे शब्द को कहते हैं, जिसके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पत्र नही होता। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होता, इसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। इनका व्यय नहीं होता, अतः ये अव्यय हैं।

जैसे- जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य, अर्थात इत्यादि।


अव्यय और क्रियाविशेषण

पण्डित किशोरीदास बाजपेयी के मतानुसार, अँगरेजी के आधार पर सभी अव्ययों को क्रियाविशेषण मान लेना उचित नही; क्योंकि कुछ अव्यय ऐसे हैं, जिनसे क्रिया की विशेषता लक्षित नहीं होती। जैसे- जब मैं भोजन करता हूँ, तब वह पढ़ने जाता हैं। इस वाक्य में 'जब' और 'तब' अव्यय क्रिया की विशेषता नहीं बताते। अतः, इन्हें क्रियाविशेषण नहीं माना जा सकता।


सर्वानम किसे कहते हैं परिभाषा 


निम्नलिखित अव्यय क्रिया की विशेषता नहीं बताते-


(i) कालवाचक अव्यय- 


इनमें समय का बोध होता है। जैसे- आज, कल, तुरन्त, पीछे, पहले, अब, जब, तब, कभी-कभी, कब, अब से, नित्य, जब से, सदा से, अभी, तभी, आजकल और कभी। उदाहरणार्थ-

अब से ऐसी बात नहीं होगी। 

ऐसी बात सदा से होती रही है। 

वह कब आया, मुझे पता नहीं।


(ii) स्थानवाचक अव्यय- 


इससे स्थान का बोध होता है। जैसे- यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, यहाँ से, वहाँ से, इधर-उधर। उदाहरणार्थ-

वह यहाँ नहीं है। 

वह कहाँ जायेगा ?

वहाँ कोई नहीं है। 

जहाँ तुम हो, वहाँ मैं हूँ।


(iii) दिशावाचक अव्यय- 


इससे दिशा का बोध होता है। जैसे- इधर, उधर, जिधर, दूर, परे, अलग, दाहिने, बाएँ, आरपार।


(iv) स्थितिवाचक अव्यय- 


नीचे,> नीचे, ऊपर तले, सामने, बाहर, भीतर इत्यादि।


अव्यय के भेद

अव्यय निम्नलिखित चार प्रकार के होते है -


(1) क्रियाविशेषण (Adverb)


(2) संबंधबोधक (Preposition)


(3) समुच्चयबोधक (Conjunction)


(4) विस्मयादिबोधक (Interjection)


(1) क्रियाविशेषण :- 

जिन शब्दों से क्रिया, विशेषण या दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट हो, उन्हें 'क्रियाविशेषण' कहते है।


दूसरे शब्दो में- जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाते है, उन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है।


जैसे- राम धीरे-धीरे टहलता है; राम वहाँ टहलता है; राम अभी टहलता है।

इन वाक्यों में 'धीरे-धीरे', 'वहाँ' और 'अभी' राम के 'टहलने' (क्रिया) की विशेषता बतलाते हैं। ये क्रियाविशेषण अविकारी विशेषण भी कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त, क्रियाविशेषण दूसरे क्रियाविशेषण की भी विशेषता बताता हैं। 

वह बहुत धीरे चलता है। इस वाक्य में 'बहुत' क्रियाविशेषण है; क्योंकि यह दूसरे क्रियाविशेषण 'धीरे' की विशेषता बतलाता है।


क्रिया विशेषण के प्रकार


(1) प्रयोग के अनुसार- 


(i) साधारण


(ii) संयोजक


(iii) अनुबद्ध


(2) रूप के अनुसार- 


(i) मूल क्रियाविशेषण


(ii) यौगिक क्रियाविशेषण


(iii) स्थानीय क्रियाविशेषण


(3) अर्थ के अनुसार- 


(i) परिमाणवाचक


(ii) रीतिवाचक


(1) 'प्रयोग' के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद

(i) साधारण क्रियाविशेषण- 


जिन क्रियाविशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में स्वतन्त्र होता हैं, उन्हें 'साधारण क्रियाविशेषण' कहा जाता हैं।

जैसे- हाय! अब मैं क्या करूँ? बेटा, जल्दी आओ। अरे ! साँप कहाँ गया ?


(ii) संयोजक क्रियाविशेषण- 


जिन क्रियाविशेषणों का सम्बन्ध किसी उपवाक्य से रहता है, उन्हें ' संयोजक क्रियाविशेषण' कहा जाता हैं।

जैसे- जब रोहिताश्र्व ही नहीं, तो मैं ही जीकर क्या करूँगी ! जहाँ अभी समुद्र हैं, वहाँ किसी समय जंगल था।


(iii) अनुबद्ध क्रियाविशेषण- 


जिन क्रियाविशेषणों के प्रयोग अवधारण (निश्र्चय) के लिए किसी भी शब्दभेद के साथ होता हो, उन्हें 'अनुबद्ध क्रियाविशेषण' कहा जाता है। 

जैसे- यह तो किसी ने धोखा ही दिया है। मैंने उसे देखा तक नहीं।


(2) रूप के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद


(i) मूल क्रियाविशेषण- 


ऐसे क्रियाविशेषण, जो किसी दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते, 'मूल क्रियाविशेषण' कहलाते हैं।

जैसे- ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं।


(ii) यौगिक क्रियाविशेषण- 


ऐसे क्रियाविशेषण,जो किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय या पद जोड़ने पर बनते हैं, 'यौगिक क्रियाविशेषण' कहलाते हैं। 

जैसे- मन से, जिससे, चुपके से, भूल से, देखते हुए, यहाँ तक, झट से, वहाँ पर। यौगिक क्रियाविशेषण संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, धातु और अव्यय के मेल से बनते हैं।


यौगिक क्रियाविशेषण नीचे लिखे शब्दों के मेल से बनते हैं-


(i) संज्ञाओं की द्विरुक्ति से- घर-घर, घड़ी-घड़ी, बीच-बीच, हाथों-हाथ। 


(ii) दो भित्र संज्ञाओं के मेल से- दिन-रात, साँझ-सबेरे, घर-बाहर, देश-विदेश। 


(iii) विशेषणों की द्विरुक्ति से- एक-एक, ठीक-ठीक, साफ-साफ। 


(iv) क्रियाविशेषणों की द्विरुक्ति से- धीरे-धीरे, जहाँ-तहाँ, कब-कब, कहाँ-कहाँ। 


(v) दो क्रियाविशेषणों के मेल से- जहाँ-तहाँ, जहाँ-कहीं, जब-तब, जब-कभी, कल-परसों, आस-पास। 


(vi) दो भित्र या समान क्रियाविशेषणों के बीच 'न' लगाने से- कभी-न-कभी, कुछ-न-कुछ। 


(vii) अनुकरण वाचक शब्दों की द्विरुक्ति से- पटपट, तड़तड़, सटासट, धड़ाधड़। 


(viii) संज्ञा और विशेषण के योग से- एक साथ, एक बार, दो बार। 


(ix) अव्य य और दूसरे शब्दों के मेल से- प्रतिदिन, यथाक्रम, अनजाने, आजन्म। 


(x) पूर्वकालिक कृदन्त और विशेषण के मेल से- विशेषकर, बहुतकर, मुख़्यकर, एक-एककर।


(iii) स्थानीय क्रियाविशेषण- 


ऐसे क्रियाविशेषण, जो बिना रूपान्तर के किसी विशेष स्थान में आते हैं, 'स्थानीय क्रियाविशेषण' कहलाते हैं। जैसे- वह अपना सिर पढ़ेगा।


(3) 'अर्थ' के अनुसार क्रियाविशेषण के भेद

(i) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण- 


जो शब्द क्रिया परिमाण या माप प्रकट करते है उन्हें 'परिमाणवाचक क्रियाविशेषण' कहते है।

जैसे -बहुत, थोड़ा, अधिक, कम, छोटा, कितना आदि 

उदाहरण- आप अधिक बोलते हो। 

यहाँ अधिक शब्द क्रिया (बोलने )की माप प्रकट करता है। इसलिए अधिक शब्द परिमाणवाचक क्रियाविशेषण है।


(क) अधिकताबोधक- बहुत, अति, बड़ा, बिलकुल, सर्वथा, खूब, निपट, अत्यन्त, अतिशय। 


(ख) न्यूनताबोधक- कुछ, लगभग, थोड़ा, टुक, प्रायः, जरा, किंचित्।


(ग) पर्याप्तिवाचक- केवल, बस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बराबर, ठीक, अस्तु। 


(घ) तुलनावाचक- अधिक, कम, इतना, उतना, जितना, कितना, बढ़कर।


(ड़) श्रेणिवाचक- थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम से, बारी-बारी से, तिल-तिल, एक-एककर, यथाक्रम।


(ii) रीतिवाचक क्रियाविशेषण- 


जो शब्द क्रिया की रीती या ढंग बताते है उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते है।

जैसे- सहसा, वैसे, ऐसे, अचानक आदि।

उदाहरण- कछुआ धीरे-धीरे चलता है।

यहाँ धीरे-धीरे शब्द क्रिया होने ढंग बता रहा है।

इस क्रियाविशेषण की संख्या गुणवाचक विशेषण की तरह बहुत अधिक है। ऐसे क्रियाविशेषण प्रायः निम्नलिखित अर्थों में आते हैं-


(क) प्रकार- ऐसे, वैसे, कैसे, मानो, धीरे, अचानक, स्वयं, स्वतः, परस्पर, यथाशक्ति, प्रत्युत, फटाफट। 


(ख) निश्र्चय- अवश्य, सही, सचमुच, निःसन्देह, बेशक, जरूर, अलबत्ता, यथार्थ में, वस्तुतः, दरअसल। 


(ग) अनिश्र्चय- कदाचित्, शायद, बहुतकर, यथासम्भव। 


(घ) स्वीकार- हाँ, जी, ठीक, सच। 


(ड़) कारण- इसलिए, क्यों, काहे को। 


(च) निषेध- न, नहीं, मत। 


(छ) अवधारण- तो, ही, भी, मात्र, भर, तक, सा।


 


कुछ समानार्थक क्रियाविशेषणों का अन्तर


(i) अब-अभी 


'अब' में वर्तमान समय का अनिश्र्चय है और 'अभी' का अर्थ तुरन्त से है; जैसे-


अब- अब आप जा सकते हैं। 

अब आप क्या करेंगे ?


अभी- अभी-अभी आया हूँ। 

अभी पाँच बजे हैं। 


(ii) तब-फिर- 


अन्तर यह है कि 'तब' बीते हुए हमय का बोधक है और 'फिर' भविष्य की ओर संकेत करता है। जैसे-


तब- तब उसने कहा। 

तब की बात कुछ और थी।


फिर- फिर आप भी क्या कहेंगे। 

फिर ऐसा होगा। 

'तब' का अर्थ 'उस समय' है और 'फिर' का अर्थ 'दुबारा' है। 

'केवल' सदा उस शब्द के पहले आता है, जिसपर जोर देना होता है; लेकिन 'मात्र' 'ही', उस शब्द के बाद आता है।


(iii) कहाँ-कहीं- 


'कहाँ' किसी निश्र्चित स्थान का बोधक है और 'कही' किसी अनिश्र्चित स्थान का परिचायक। कभी-कभी 'कही' निषेध के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है; जैसे-


कहाँ- वह कहाँ गया ?

मैं कहाँ आ गया ?

कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली!


कहीं- वह कहीं भी जा सकता है। 

अन्य अर्थों में भी 'कही' का प्रयोग होता है-

(क) बहुत अधिक- यह पुस्तक उससे कहीं अच्छी है। (ख) कदाचित्- कहीं बाघ न आ जाय। (ग) विरोध- राम की माया, कहीं धूप कहीं छाया।


(iv) न-नहीं-मत- 


इनका प्रयोग निषेध के अर्थ में होता है। 'न' से साधारण-निषेध और 'नहीं' से निषेध का निश्र्चय सूचित होता है। 'न' की अपेक्षा 'नहीं' अधिक जोरदार है। 'मत' का प्रयोग निषेधात्मक आज्ञा के लिए होता है। जैसे-


'न'- इनके विभित्र प्रयोग इस प्रकार हैं-

(क) क्या तुम न आओगे ?

(ख) तुम न करोगे, तो वह कर देगा। 

(ग) 'न' तुम सोओगे, न वह। 

(घ) जाओ न, रुक क्यों गये ?


नहीं- (क) तुम नहीं जा सकते। 

(ख) मैं नहीं जाऊँगा। 

(ग) मैं काम नहीं करता। 

(घ) मैंने पत्र नहीं लिखा।


मत- (क) भीतर मत जाओ। 

(ख) तुम यह काम मत करो। 

(ग) तुम मत गाओ।


(v) ही-भी- 


बात पर बल देने के लिए इनका प्रयोग होता है। अन्तर यह है कि 'ही' का अर्थ एकमात्र और 'भी' का अर्थ 'अतिरिक्त' सूचित करता है। जैसे-


भी- इस काम को तुम भी कर सकते हो।


ही- यह काम तुम ही कर सकते हो।


(vi) केवल-मात्र- 


'केवल' अकेला का अर्थ और 'मात्र' सम्पूर्णता का अर्थ सूचित करता है; जैसे-


केवल- आज हम केवल दूध पीकर रहेंगे। यह काम केवल वह कर सकता है।


मात्र-, मुझे पाँच रूपये मात्र मिले।


(vii) भला-अच्छा- 


'भला' अधिकतर विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है, पर कभी-कभी संज्ञा के रूप में भी आता है; जैसे- भला का भला फल मिलता है।


'अच्छा' स्वीकृतिमूलक अव्यय है। यह कभी अवधारण के लिए और कभी विस्मयबोधक के रूप में प्रयुक्त होता है। जैसे-


अच्छा, कल चला जाऊँगा। 

अच्छा, आप आ गये !


(viii) प्रायः-बहुधा- 


दोनों का अर्थ 'अधिकतर' है, किन्तु 'प्रायः' से 'बहुधा की मात्रा अधिक होती है।


प्रायः- बच्चे प्रायः खिलाड़ी होते हैं। 

बहुधा- बच्चे बहुधा हठी होते हैं।


(ix) बाद-पीछे- 


'बाद' काल का और 'पीछे' समय का सूचक है। जैसे-


बाद- वह एक सप्ताह बाद आया। 

पीछे- वह पढ़ने में मुझसे पीछे है।


(2) सम्बन्धबोधक अव्यय :- 

जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ आकर वाक्य के दूसरे शब्द से उनका संबन्ध बताये वे शब्द 'सम्बन्धबोधक अव्यय' कहलाते ।

दूसरे शब्दों में- जो अव्यय किसी संज्ञा के बाद आकर उस संज्ञा का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते है, उसे 'सम्बन्धबोधक अव्यय' कहते हैं। 

यदि यह संज्ञा न हो, तो वही अव्यय क्रियाविशेषण कहलायेगा।


जैसे- दूर, पास, अन्दर, बाहर, पीछे, आगे, बिना, ऊपर, नीचे आदि।

उदाहरण- वृक्ष के 'ऊपर' पक्षी बैठे है।

धन के 'बिना' कोई काम नही होता।

मकान के 'पीछे' गली है।


उपयुक्त प्रथम वाक्य में 'ऊपर' शब्द 'वृक्ष और 'पक्षी' के सम्बन्ध को दर्शता है।

दूसरे वाक्य में 'बिना' शब्द 'धन' और 'काम' में सम्बन्ध दर्शता है।

तीसरे वाक्य में 'पीछे' शब्द 'मकान' और 'गली' में सम्बन्ध दर्शाता है।

अतः 'ऊपर' 'बिना' 'पीछे' शब्द सम्बन्धबोधक है।


विशेष- यह बात विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि सम्बन्धबोधक शब्द को सम्बन्ध दर्शाना आवश्यक होता है। जब यह सम्बन्ध न जोड़कर साधारण रूप में प्रयोग होता है तो यह क्रिया-विशेषण का कार्य करता है। इस प्रकार एक ही शब्द क्रिया-विशेषण भी हो सकता है और सम्बन्धबोधक भी। जैसे-


सम्बन्धबोधक


क्रिया-विशेषण


दुकान 'पर' ग्राहक खड़ा है।


दुकान 'पर' खड़ा है।


मेज के 'ऊपर' किताबें है।


मेज के 'ऊपर' है।


सम्बन्धबोधक के भेद

प्रयोग, अर्थ और व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक अव्यय के निम्नलिखित भेद है । 

(1) प्रयोग के अनुसार- 

(i) सम्बद्ध

(ii) अनुब

दोस्तो आपको Avyay kise kahte hain, paribhasha, bhed की पोस्ट किसी लगी हम जरूर बताएं । इस पोस्ट में हमने आपको अव्यय के बारे में बताया है


टिप्पणियाँ

Popular posts

ग्रोसरी लिस्ट इन हिंदी GROCERY LIST IN HINDI, रसोई (Kitchen) के समान की लिस्ट

सर्वनाम किसे कहते हैं ? sarvanam kise kehte hain?

विशेषण किसे कहते हैं |

facebook ka password kaise Jane ?

Desi status whatsappin hindi |